भगवान शिव का प्रिय सावन मास के शुरू होते देशभर में कावड़ यात्राएं प्रारंभ हो जाती हैं। कावड़ यात्रा के दौरान शिव भक्त पवित्र नदियों के तट से जल भरकर उसको कावड़ पर बांध कर कंधों पर लटका कर शिवालय में लाते हैं और उस जल को शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। कावड़ यात्रा को लेकर शिवभक्तों में खासा उत्साह देखने को मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा करने से भगवान शिव सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं और जीवन के सभी संकटों को दूर करते हैं। पुराणों में बताया गया है कि कांवड़ यात्रा भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सहज रास्ता है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। भगवान परशुराम गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर आए थे और यूपी के बागपत के पास स्थित 'पुरा महादेव' का गंगाजल से अभिषेक किया था। उस समय सावन मास ही चल रहा था, इसी के बाद से कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई। आज भी शिव भक्तों द्वारा इस परंपरा का पालन किया जाता है।
संस्कारधानी जबलपुर में सावन मास के अवसर पर विशेष कावड़ यात्रा का आयोजन किया गया। नर्मदा नदी के संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण के लिए वर्षो से कार्यरत "नर्मदा मिशन" के संस्थापक समर्थ सद्गुरु भैया जी सरकार (Samarth Sadguru Bhaiya ji Sarkar) के मार्गदर्शन में संस्कार कावड़ यात्रा (Sanskar Kawad Yatra Samiti) समिति द्वारा "Run for Nature" की थीम पर विशेष कावड़ यात्रा का आयोजन किया गया। इस कावड़ यात्रा के दौरान हजारों की संख्या में कावड़ियों द्वारा एक हाथ में कावड़ और एक हाथ में पौधा लेकर 35 किलोमीटर की यात्रा की गयी। संस्कारधानी जबलपुर में आयोजित इस कावड़ यात्रा को गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स (Golden Book of World Records) द्वारा "Largest Religious Walk Carrying a Sapling" के शीर्षक के साथ वर्ल्ड रिकॉर्ड के रूप में दर्ज किया गया। मुख्य रूप से शहर के पांच विधानसभा क्षेत्रों से गुजरने वाली इस विशेष कावड़ यात्रा का जगह-जगह स्वागत सत्कार भी किया गया।
संस्कारधानी की ये संस्कार कावड़ यात्रा विश्व की सबसे बड़ी कावड़ यात्रा मानी जाती है। इस बार की इस विशेष कावड़ यात्रा के दौरान सभी कावड़ियों द्वारा भगवान शिव की भक्ति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया गया। यात्रा की शुरूआत नर्मदा तट गौरीघाट पर मां की पूजा अर्चना से हुई। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। ये कावड़ यात्रा ग्वारीघाट से शुरू होकर रेतनाका, रामपुर चौक, आदिगुरु शंकराचार्य चौक, तीन पत्ती, यातायात चौक, सुपरमार्केट, लार्डगंज चौक, बड़ा फुआरा, सराफा बाजार से गलगला, बेलबाग, घमापुर चौक, कांचघर चौक, गोकलपुर, रांझी, खमरिया चौक से कैलाश धाम पर समाप्त हुई।
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