पोते ने कला के जरिए दी दिवंगत दादी को अनोखी श्रद्धांजलि, गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में नाम दर्ज
रुबिक क्यूब आर्ट केवल एक खेल नहीं, बल्कि एक कला भी है। यह एक रोचक और मानसिक चुनौती प्रदान करता है जिसमें आपको एक 3x3x3 या अन्य आकार के क्यूब के रंगों को सोल्व करने के लिए उन्हें एक सही प्रारूप में पूरा करना होता है। रुबिक क्यूब आर्ट का मुख्य उद्देश्य अवसरों को देखने की क्षमता को बढ़ावा देना है। इसमें आपको अपनी मानसिक ताक़त का उपयोग करके क्यूब को खुद से बनाना होता है, जिसमें रंगों को मिलाने की एक विशेष विधि का पालन करना पड़ता है। इससे आपकी दृढ़ता, संरचनात्मक समझ, और समस्या समाधान कौशल में सुधार होता है। रुबिक क्यूब आर्ट एक बहुत ही अद्वितीय और संतुलित कला है, जो आपकी सोचने और विचार करने की क्षमता को बढ़ावा देता है, साथ ही आपको धैर्य और समर्पण का भी अभ्यास कराता है। इसके अलावा, यह आपके कल्पना और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के एक रूप के रूप में भी कार्य कर सकता है, जब आप अपने खुद के रूचिकरण और डिज़ाइन कौशल का प्रयोग करते हैं।
वडोदरा, गुजरात के रहने वाले और पिछले कई वर्षों से यूके (United Kingdom) में बसे जोशी परिवार के 10 वर्षीय सहज जोशी (Sahaj Joshi) ने अपनी दादी को विशेष श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने यूके में रहने के दौरान वडोदरा स्थित रूबिक क्यूब प्रशिक्षण संस्थान, रूबिक स्कूल (Rubik's School) के कोच श्री कुशाग्र पंड्या जी द्वारा रूबिक क्यूब मोज़ेक कला कार्य का प्रशिक्षण लिया। वडोदरा शहर में रहने वाली उनकी दादी का हाल ही में पिछले जून में निधन हो गया था। उन्हें अनोखे तरीके से श्रद्धांजलि देने के लिए, 10 वर्षीय सहज ने रूबिक क्यूब से अपनी दादी के चेहरे का मोज़ेक बनाने के लिए 1,500 से अधिक रूबिक क्यूब्स इकट्ठा किये, जिसके बाद सहज जोशी ने 1500 से अधिक रूबिक क्यूब्स से अपनी दिवंगत दादी का चेहरा बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करी। मोज़ेक बनाने के लिए इतनी बड़ी संख्या में रूबिक क्यूब का उपयोग किये जाने के कारण सहज के कार्य को गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स (Golden Book of World Records) संस्था द्वारा "Largest Rubik's Cube Mosaic" के शीर्षक के साथ गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में दर्ज किया गया।
अपने पुत्र सहज की उपलब्धि में उनकी मां श्रीमती पूनमबेन जोशी ने कहा, "मेरे बेटे ने आज हमें गौरवान्वित किया है।" आज तक किसी भी बेटे ने अपनी दादी को इस तरह से श्रद्धांजलि नहीं दी है. इतनी कम उम्र में इतनी ऊंची सोच रखने वाले हमारे बेटे ने वडोदरा का भी गौरव बढ़ाया है। उनके इस अनोखे हुनर को गोल्ड बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज किया गया है। अब जबकि आज की पीढ़ी के बच्चे मोबाइल और गेम के आदी हैं, हमें खुशी है कि हमारा बेटा इतनी कम उम्र में इतना रचनात्मक है।
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