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वरिष्ठ चित्रकार श्री पुरुषोत्तम सोलंकी जी ने पुराने तरीके से कैनवास पर फ़िल्मी पोस्टरों का चित्रण कर बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में नाम दर्ज

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को दुनिया भर में बॉलीवुड के नाम से जाना जाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने का रिकॉर्ड भारत के नाम है। सेंसर बोर्ड के मुताबिक भारत में हर साल करीब 20 से भी ज्यादा भाषाओं में 1500 से 2000 फिल्में बनाई जाती हैं। भारतीय सिनेमा की शुरुआत 1913 में हुई, जब भारत की पहली मूक फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनी थी। यह फिल्म जाने-माने लेखक भारतेंदु हरिशचंद्र के नाटक 'हरिशचंद्र' पर आधारित थी। इस फिल्म को महान फिल्ममेकर दादा साहब फाल्के जी ने बनाया था। फाल्के जी के प्रयासों से ही भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की नींव पड़ी। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के शुरूआती दौर में में तकनिकी इतनी विकसित नहीं थी, उस समय फिल्मों के पोस्टर चित्रकारों द्वारा हाथों से निर्मित किये जाते थे। आज तो ऐसा समय है जब पोस्टर को बड़ी और अच्छी तकनीकों के साथ चमका कर और एडिटिंग सॉफ्टवेयर के साथ बनाया जाता है। कहा जाता है एक फिल्म की सफलता का आधार कई प्रतिशत तक उसके पोस्टर पर भी निर्भर करता है। किसी भी फिल्म का पहला इम्प्रेशन उसका पोस्टर ही होता हैं इसलिए इन फ़िल्मी पोस्टरों के निर्माण में कड़ी मेहनत करी जाती थी। यही कारण था कि तब उन पोस्टर्स की बात ही इतनी अलग होती थी कि उन्हें सहज कर रखा जाता था।


आधुनिक एवं डिजिटल युग ने फिल्मों के पोस्टरों को हाथों से बनाने की कला अब लुप्त होते जा रही हैं। वर्तमान पीढ़ी को इस कला से परिचित करवाने और इसे लुप्त होने से बचाने के लिए मध्यप्रदेश, इंदौर के एक वरिष्ठ चित्रकार श्री पुरुषोत्तम सोलंकी जी (Mr. Purshottam Solanki) ने 50 साल पुरानी फिल्मों के पोस्टरों को बनाने का कार्य शुरू किया। सोलंकी जी ने यह कार्य 1 जनवरी 2019 में शुरू किया था, एवं 15 दिसंबर 2023 तक उन्होंने 100 फिल्मों के पोस्टर बनाएं। कैनवास पर इतनी अधिक संख्या फ़िल्मी पोस्टरों का निर्माण कर वरिष्ठ चित्रकार श्री पुरुषोत्तम सोलंकी जी ने एक नया विश्व कीर्तिमान स्थापित किया जिसे गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स (Golden Book of World Records) में "Largest Feat of Recreating Old Hindi Film Posters on Canvas" के शीर्षक के साथ दर्ज किया गया। श्री सोलंकी जी ने 1913 के बाद की कई हिट फिल्मों के पोस्टरों को 30'x40' के केनवास पर बना कर उन फिल्मों की यादों को पुनः जिवंत कर दिया। 

71 वर्षीय चित्रकार श्री पुरुषोत्तम सोलंकी जी बताते हैं कि आज की युवा पीढ़ी शायद ही जानती होगी कि किस तरह पुराने जमाने में फिल्मी पोस्टर बनाए जाते थे और उसमे किन रंगों का प्रयोग किया जाता था। उन्होंने 1969 में जयपुर से पोस्टर मेकिंग की शुरुआत करी थी। वहाँ उन्होंने 12 वर्षों तक यह कार्य किया, इस दौर में उन्होंने ‘मेरा नाम जोकर, जुगनु, रजिया सुल्तान, गोपी, यादों की बारात’ जैसी हिट फिल्मों के पोस्टर बनाए। उन्होंने पॉलो विक्टरी थिएयर जयपुर में फिल्म मेरा नाम जोकर का 42 फीट का कटआउट भी बनाया था, जो उस वक्त का सबसे बड़ा कटआउट था। श्री सोलंकी जी बताते हैं कि उस समय डेढ़ रुपए वर्ग फीट के हिसाब से आर्टिस्ट को पैसा दिया जाता था। ५० साल पहले पावडर कलर से पोस्टर बनाए जाते थे। पावडर कलर में अलसी का तेल मिक्स किया जाता है, जिससे ये 100 साल तक खराब नहीं होता है और न ही फोल्ड करने पर भी किसी तरह का क्रेक आता है।

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