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उस्ताद शायर अफ़रोज़ 'सहर' जी ने सबसे तवील (लम्बी) रदीफ़ वाली ग़ज़ल कहकर बनाया विश्व कीर्तिमान गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में नाम दर्ज

ग़ज़ल उर्दू काव्य का एक अत्यंत लोकप्रिय, मधुर, अहम हिस्सा है, यह एक प्राचीन काव्य शैली है। ग़ज़ल उत्पत्ति 7वीं शताब्दी की अरबी कविता से मानी जाती है। सूफी फकीरों और नए इस्लामिक सल्तनत के दरबारों के प्रभाव के कारण 12वीं शताब्दी में ग़ज़ल भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गई। ग़ज़ल एक कविता से कहीं अधिक है। यह शेरों का एक छोटा संग्रह है जो उर्दू काव्य साहित्य के नियमों जैसे मल्ता, मक्ता, काफ़िया और रदीफ़ आदि का पालन करता है। ग़ज़ल शेरों से बनती हैं। ग़ज़ल के हर शेर में दो पंक्तियां होती हैं। शेर की हर पंक्ति को मिसरा कहते हैं। ग़ज़ल के पहले शेर को ‘मत्ला’ कहते हैं। इसके दोनों मिसरों में यानि पंक्तियों में ‘क़ाफिया’ होता हैं। वह शब्द जो मत्ले की दोनों पंक्तियों में और हर शेर की दूसरी पंक्ति में रदीफ़ के पहले आये उसे ‘क़ाफिया’ कहते हैं। प्रत्येक शेर में ‘क़ाफिये’ के बाद जो शब्द आता हैं उसे ‘रदीफ़’ कहते हैं। पूरी ग़ज़ल में रदीफ़ एक होती हैं। ग़ज़ल के आखरी शेर को जिसमें शायर का नाम अथवा उपनाम हो उसे ‘मक़्ता’ कहते हैं। अगर नाम न हो तो उसे केवल ग़ज़ल का ‘आख़री शेर’ ही कहा जाता हैं। ग़ज़ल के माध्यम से शायर अपनी भावनाएं और विचारों को अनूठे और सुंदर तरीके से व्यक्त करता है, जो इसे साहित्य का एक श्रेष्ठ रूप बनाता है।

मध्यप्रदेश, उज्जैन शहर के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त उस्ताद शायर अफ़रोज़ 'सहर' जी (Afroz Sahar) ने ग़ज़ल गोई के इतिहास में एक उल्लेखनीय कार्य किया। उस्ताद अफ़रोज़ सहर जी द्वारा एक ग़ज़ल कही गयी जो कि ग़ज़ल गोई के इतिहास में अब तक की सबसे तवील (लम्बी) रदीफ़ वाली ग़ज़ल हैं। उनके द्वारा कही गयी सबसे बड़े रादीफ़ वाली ग़ज़ल को गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स (Golden Book of World Records) में "Gazal With Longest Radeef" शीर्षक के साथ वर्ल्ड रिकॉर्ड के रूप में दर्ज किया। वर्ल्ड रिकॉर्ड का सर्टिफिकेट व मैडल गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स के एशिया हेड डॉ. मनीष विश्नोई जी (Dr. Manish Vishnoei Asia Head, GBWR) एवं नेशनल हेड श्री आलोक कुमार जी (Mr. Alok Kumar National Head, GBWR) द्वारा अफ़रोज़ 'सहर' जी को प्रदान का सम्मानित किया गया। उर्दू साहित्य के इतिहास में अफ़रोज़ 'सहर' जी से पूर्व ऐसा कारनामा किसी ने भी नहीं किया उन्होंने यह अद्भूत कार्य करके उर्दू साहित्य के क्षेत्र में देश का मान बढ़ाया हैं। 

उर्दू अदब के वरिष्ठ साहित्यकार कलीम जावेद जी ने जानकारी देते हुए बताया कि उस्ताद शायर अफरोज सहर के द्वारा कही गई ग़ज़ल जिसे गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में स्थान प्राप्त हुआ है, उसके प्रत्येक शेर में सोलह रुक्न (खंड, स्तंभ) हैं तथा प्रत्येक रुक्न (खंड, स्तंभ) हश्त हर्फी (आठ मात्रिक) है, अर्थात प्रत्येक मिसरे (पंक्ति) में 64 मात्राएँ हैं जिसमें केवल रदीफ़ 50, मात्रिक है जो कि ग़ज़ल गोई के इतिहास में प्रयोग की जाने वाली अब तक की सबसे बड़ी 'रदीफ़ है। अफ़रोज़ 'सहर' जी का नाम गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में दर्ज होने पर अन्य साहित्यकारों, शुभचिंतकों एवं परिवारजनों द्वारा बधाइयां प्रेषित की गई।


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