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बिहार के कुंदन कुमार राय ने मधुबनी आर्ट बना कर रचा विश्व कीर्तिमान गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में नाम दर्ज

मधुबनी चित्रकला, जो कि मिथिला चित्रकला के नाम से भी मशहूर हैं, बिहार के मिथिला क्षेत्र की प्रमुख कला परंपरा हैं। इस रंगीन चित्रकला का परिचय 1960 में मधुबनी जिले के एक साध्वी, स्वर्गीय महासुन्दरी देवी जी द्वारा यहाँ के लोगों को करवाया गया। समय के साथ-साथ यहाँ के स्थानीय लोगो द्वारा इस कला को अपनाया गया और फिर ये चित्रकला पूरी दुनिया भर में मशहूर हो गयी। मधुबनी चित्रकला के साथ प्रभु श्री राम एवं माता सीता का काफी दिलचस्प इतिहास जुड़ा हुआ हैं। कहा जाता हैं कि इस चित्रकला का उपयोग राजा जनक द्वारा सीता-राम विवाह के समय नगर को सजाने के लिये किया गया था। वास्तविक रूप से तो यह चित्र गांवों की मिट्टी से लीपी गई झोपड़ियों में देखने को मिलते थे, लेकिन इसे अब कपड़े और पेपर के कैनवास पर भी खूब बनाया जाता है। आज भी कई क्षेत्रों में विवाह के समय राम-सीता जी के चित्र बनाकर उन्हें इस पवित्र बंधन का साक्षी माना जाता हैं।मधुबनी चित्रकला में पेंटिंग्स बनाने के लिए प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता हैं।


समस्तीपुर, बिहार के श्री कुंदन कुमार राय जी (Mr. Kundan Kumar Roy) द्वारा कोरोना काल के दौरान विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर आधारित मिथिला पेंटिंग्स बनाई गई। समस्तीपुर के ये युवा चित्रकार कलर ब्लाइंडनेस रोग से पीड़ित हैं यह आंखों की एक ऐसी समस्या है, जिसमें आंखें सामान्य रूप से रंगों को नहीं देख पाती हैं और इससे ग्रस्त व्यक्ति कुछ निश्चित रंगों में अंतर नहीं कर पाता। किन्तु कुंदन कुमार राय जी द्वारा बनाये गए ये चित्र रंगों को बखूबी दर्शाते हैं। कोरोना महामारी काल 22 मार्च 2020 से 1अप्रैल 2022 तक कोरोना वायरस जागरूकता, मतदाता जागरूकता व अन्य सामाजिक जागरूकता विषयों पर कुंदन कुमार जी द्वारा चित्र बनाए गए। कोरोना पेंडमिक के दौरान सर्वाधिक मधुबनी चित्र बनाने के कारण गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Golden Book of World Records) द्वारा "Most Madhubani Arts Created During Corona Pandemic Period by an Individual" के शीर्षक के साथ कुंदन कुमार राय जी का नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड रूप के दर्ज किया गया।


चित्रकार श्री कुंदन कुमार राय जी का कहना है कि मिथिला पेंटिंग जीवन जीने की कला सिखाती है, इसकी हर पेंटिंग में मिथिला की सांस्कृतिक महक छिपी होती है। मिथिला पेंटिंग दो लाइनों के बीच बनाने वाली कला है, और ये दो लाइन जीवन के दो धारा सुख और दुख की तरह हैं। इस कला में जितना लोग डूबेंगे उतना उन्हें आनंद आएगा। श्री कुंदन कुमार राय जी का यह भी कहना है कि वह चाहते हैं कि इस क्षेत्र में अधिक से अधिक युवा वर्ग जुड़ें, जिससे मिथिला  पेंटिंग का प्रसार होगा। सांस्कृतिक संरक्षण के साथ-साथ यह युवाओं के रोजगार का जरिया भी बनेगा। वर्तमान समय में कुंदन राय जी प्रभु श्री राम की समग्रता एवं सम्पूर्ण रामचरित को मिथिला पेंटिंग के माध्यम से दर्शानें में लगे हुए हैं। 

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